Thursday, April 10, 2014
Devine Experience: Rameshwaram, Tmilnadu
रामेश्वरम की यात्रा:
त्रिवेंद्रम से लगभग ६ -७ घंटे की दूरी पर स्तिथ है रामेश्वरम. मदुरै से होते हुए सुबह से घर से निकले हुए , शाम को लगभग ५;०० बजे रामेश्वरम पहुंचे. मदुरै त्रिवेन्द्रम का रास्ता लगभग ४-५ घंटों में तय किया जा सकता है.
भारत के दक्षिण भाग में सफर करने का यही एक मज़ा है की आप आप रास्ते भर केरल की वादियाँ और तमिलनाडु के architecture का लुत्फ़ उठा सकते है.
फिर वह Madurai में मीनाक्षी टेम्पल का architecture हो या रामेश्वरम में शिव मंदिर का. दक्षिण भारत में स्थित मंदिरों के बारे में बात करने के लिए मै कोई archeologist तो हूँ नहीं पर इन मंदिरों को देखकर एक बात हमेशा मेरे दिमाग में आती है, और वह ये है की.. इन मंदिरों की दीवारों पे या खम्बो पर ही इतनी मूर्तियां होती है कि समझ नहीं आता मदिर के बाहर से दर्शन करूँ या अंदर जाकर भी कुछ बाकी है दर्शन करने को. पर सच में इतनी कारीगरी से बनाये गए ये मंदिर और उन पर कि गयी नक्काशियां हमे अपनी और खींच ही लेती है. देवी मीनाक्षी के दर्शन कर के हम शाम को रामेश्वरम पहुंचे. होटल भी शिव मंदिर के करीब होने कि वजह से फ्रेश होने के बाद शाम को ही शिव मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचे. उस अत्यंत विशाल और सुन्दर मंदिर में प्रवेश करते ही जो ईश्वरीय अनुभूति हुई वो फिर से सांसारिक जीवन में जाने कि अनुमति ही नहीं दे रही थी. कहा जाता है कि रामेश्वरम का शिव मंदिर श्री राम द्वारा स्थापित किया हुआ वही मंदिर है जो उन्होंने श्रीलंका से लौटने के बाद रावण के साथ हुए युद्धः में उनके द्वारा हुई सभी भूल चूक कि क्षमा मांगने के लिए बनाया था और माता सीता के साथ उस शिवलिंग कि पूजा की थी.
खैर! रात को वहीं आराम करने के बाद हम धनुष्कोडी के लिए रवाना हुए.
धनुषकोडी गांव भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्थलीय सीमा है जो पाक जलसंधि में बालू के टीले पर सिर्फ 50 गज की लंबाई में विश्व के लघुतम स्थानों में से एक है। साधारण शब्दों में कहें, तो यह भारत के छोर पर ऐसी जगह है जहां से श्रीलंका दिखाई पड़ता है। हालांकि इसकी ख्याति अब भुतहे शहरों में ज्यादा है, क्योंकि इस इलाके में अंधेरा होने के बाद घूमना मना है। गांव में समूह में दिन के दौरान जाएं और सूर्यास्त से पहले रामेश्वरम लौट आएं क्योंकि पूरा 15 किमी का रास्ता सुनसान, डरावना और रहस्यमय है।
बावजूद इसके पर्यटन इस क्षेत्र में उभर रहा है। भारी संख्या में पर्यटक इस भुतहे शहर को देखने अक्सर आते हैं। भारतीय नौसेना ने भी यहां चौकी की स्थापना की है।
धनुषकोडी में आप भारतीय महासागर के गहरे और उथले पानी को बंगाल की खाड़ी के छिछले और शांत पानी से मिलते हुए देख सकते हैं। क्योंकि समुद यहां छिछला है, तो आप बंगाल की खाड़ी में जा सकते हैं और रंगीन मूंगों, मछलियों, समुद्री शैवाल, स्टार मछलियों और समुद्र ककड़ी आदि को देख सकते हैं।
बीते समय की रंजीन जिंदगी यहां अभी भी खंडहरों में दिखाई पड़ती है। 1964 के चक्रवात से पहले, धनुषकोडी एक उभरता हुआ पर्यटन और तीर्थ स्थल था। चूंकि सीलोन (अब श्रीलंका) केवल 18 मील दूर है, धनुषकोडी और सिलोन के थलइमन्नार के बीच यात्रियों और सामान को समुद्र के पार ढ़ोने के लिए कई साप्ताहिक फेरी सेवाएं थीं। इन तीर्थयात्रियों और यात्रियों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वहां होटल, कपड़ों की दुकानें और धर्मशालाएं भी थी। धनुषकोडी के लिए रेल लाइन, जो तब रामेश्वरम नहीं जाती थी और जो 1964 के चक्रवात में नष्ट हो गई, सीधे मंडपम से धनुषकोडी जाती थी। उन दिनों धनुषकोडी में रेलवे स्टेशन, एक लघु रेलवे अस्पताल, एक पोस्ट ऑफिस और कुछ सरकारी विभाग जैसे मछली पालन आदि थे। यह इस द्वीप पर जनवरी 1897 में तब तक था, जब स्वामी विवेकानंद सितंबर 1893 में यूएसए में आयोजित धर्म संसद में भाग लने के लेकर पश्चिम की विजय यात्रा के बाद अपने चरण कोलंबो से आकर इस भारतीय भूमि पर रखे।
हिदूं धर्मग्रथों के अनुसार रावण के भाई और राम के सहयोगी विभीषण के अनुरोध पर राम ने अपने धनुष के एक सिरे से सेतु को तोड़ दिया और इस प्रकार इसका नाम धनुषकोडी पड़ा, धनुष यानि धनुष और कोडी यानि सिरा। यह भी कहा जाता है कि राम ने अपने प्रसिद्ध धनुष के एक छोर से सेतु के लिए इस स्थान को चिह्नित किया। सामान्यत: दो समुद्रों के संगम पर पवित्र सेतु में स्नान कर तीर्थयात्री रामेश्वरम के लिए अपनी यात्रा प्रारंभ करते हैं। एक रेखा में पाई जाने वाली चट्टानों और टापूओं की श्रृंखला प्राचीन सेतु के रूप में दिखाई देती हैं और जिसे राम सेतु के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि काशी की तीर्थयात्रा महोदधि (बंगाल की खाड़ी) और रत्नाकर (हिंद महासागर) के संगम पर धनुषकोडी में पवित्र स्थान के साथ रामेश्वरम में पूजा के साथ ही पूर्ण होगी। सेतु संस्कृत का पुल या सेतु को इंगित करने वाला शब्द है। राम द्वारा लंका पहुंचने के लिए महासागर पर बनाए गए पुल के रूप में यह अब विशेष महत्व अर्जित कर चुका है।
बड़े ही सुखद अनुभवों और स्मृतियों को लेकर हम वापिस लौट आये.
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